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Wednesday 1 July 2015

आलमी सियासत - इजराइल के हामी और मुखालिफ में जंग


आज दुनिया तेज़ी से बदल रही हैं और इस तेज़ी में रोज़ बा रोज़ पेचीदगी आ रही हैं. इस पेचीदगी की हद इतनी ऊंचाई पर हैं की आम इंसान के लिए इसे समझना आसान नहीं. सिर्फ हिन्दुस्तान के हालात ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया के हालात एक जैसे हैं. हर तरफ ज़ुल्म और जौर फ़ैल रहा है और इंसानियत अम्नो चैन के लिए तरस रही है.

अगर दुनिया की तरफ नज़र करे तो हालात बाद से बदतर दिखाई देते हैं. खुसूसन मुसलमानों और मुस्लिम ममालिक के हालात कुछ ज्यादा ही तकलीफदेह है. इन ममालिक में सरे फेहरिस्त फिलिस्तीन, सीरिया, इराक, यमन, लेबनान, लीबिया और बहरैन आते हैं; जहा इंसानियत को झगझोर कर देने वाले मज़ालिम ढाए जा रहे है.

देखने वाली बात ये हैं की ये मज़ालिम कौन कर रहा है, इसके पीछे क्या मकसद छिपे हुए है, अस्ल में इसके पीछे कौन है और इस सब में मुसलमान का क्या किरदार है.

अगर हम आलमी सतह पर नज़र डाले तो ज़ुल्म करने वालो में सबसे ऊपर इजराइल नज़र आता है; जिसने अपने आप को कायम करने के लिए लाखो फिलिस्तीनियों को ना सिर्फ खुद उनके वतन से बहार किया, बल्कि आज तक उन पर कई बहानो से एक के बाद दीगर हमले कर के लोगो की जान ले रहा हैं. पिछला माहे रमजान हमें याद होगा जब इजराइल ने तक़रीबन दो महीनो तक शदीद बमबारी कर के कई मासूमो की जाने ली थी.

अपने नाजायज़ वुजूद को जायज़ साबित करने के लिए इजराइल कई तरह के हिले बहानो और तरीको का इस्तेमाल करता है जिसमे से मीडिया सबसे ऊपर है. डिस्कवरी चैनल पर खास प्रोग्राम्स दिखाए जाते हैं जिसमे इजराइल के वेपन्स और टेक्नोलॉजी को ऐसे बताया जाता है की दुनिया में किसी के पास नहीं है. इसकी बिना पर आज की नस्ल इजराइल को हथियारों और टेक्नोलॉजी का मरकज़ समझने लगी है; जबकि इजराइल खुद अपने हथियारों की टेस्ट और रिसर्च अमेरीका की मदद से करता है. 

इजराइल के पास खुदको बाकी रखने के लिए ज़राए इतने कम हैं की अमेरीका से उसे रोज़ का 7 मिलिअन डॉलर्स मदद के रूप में लेना पड़ता है और हथियारों के बनाने का खर्च भी वही से मिलता है.

इस सब के साथ, इजराइल इतना डरपोक और सहमा हुआ रहता है की कोई चीज़ होने से पहले ही चीजों को अपनी तरफ करने के फिराक़ में रहता है, जिसके नतीजे में इजराइल के पडोसी मुल्को की अवाम उससे बहोत ज्यादा नफरत करती है. इस नफरत के नतीजे में बहोत से ऐसे ग्रुप्स वुजूद में आए जिन्होंने अपना पहला फ़रीज़ा इजराइल का खत्मा करार दिया है. 

जो भी फर्द या गिरोह इजराइल के खिलाफ काम करता है, वो आज की तारीख में इजराइल और अमेरीका का सबसे बड़ा दुश्मन है. ऐसे गिरोहों को मोक़ावामत या रेजिस्टेंस के नाम से जाना जाता है. इस मोक़ावामत की रहबरी जम्हुरिये इस्लामी ईरान कर रहा है. ईरान के साथ सबसे आगे लेबनान के हिजबुल्लाह का नाम आता है जिन्होंने इजराइल को सन 2000 में बिना किसी शर्त और बात के अपनी ज़मीन से खदेड़ कर बहार किया और सन 2006 में 33 दिनों की जंग में बग़ैर किसी बाहरी मदद के लोहे के चने चबा दिए.

इसके बाद फिलिस्तीनी गिरोह हमास और इस्लामिक जिहाद का नाम आता हैं जो हर वक़्त इजराइल से सीधे जंग की हालत में रहते है. ये गिरोह फिलिस्तीन के गाजा नामी इलाके से ऑपरेट करते है, गाजा वोही जगह है जो इजराइल की चारो तरफ से घेराव में है और इजराइल अपने लड़ाकू जहाजों से वह हमेशा हमला करते रहता है.

हिजबुल्लाह और हमास को बाहरी सपोर्ट सीरिया से बशर-अल-असद की हुकूमत कर रही है, और इसी की बिना पर अमेरीका, इजराइल, ब्रिटेन और इनके साथी असद की हुकूमत को गिराना चाहते हैं. इसी वजह से उन्होंने ISIS को वुजूद में लाया और आज सारी दुनिया में जिसकी वजह से इस्लाम का नाम ख़राब कर रहे है.

इन सब के साथ यमन का रेजिस्टेंस गिरोह “अन्सारुल्लाह” भी इस फेहरिस्त में शामिल है जिसपर आज सऊदी अरब की फौजे दुसरे अरब ममालिक, अमेरीका और इजराइल के साथ मिल कर हमला कर रही है.

आलमी सियासत के इस जाल में इजराइल एक शैतानी मरकज़ की हैसियत रखता है जिसके खिलाफ मोक़वामती गिरोह ईरान की सरबराही में अपनी ज़मीन, इज्ज़त और वकार की हिफाज़त कर रहे है.
अगर हम तारीख में जा कर देखे तो पहले वर्ल्ड वार के बाद जब उस्मानिया खिलाफत टूटी, उस वक़्त मिडिल ईस्ट में मौजूद सभी अरब ममालिक वुजूद में आए. इन सब पर अंग्रेजो ने अपने पिथ्थुओं को हाकिम बनाया ताकि ये लोग कभी इनके खिलाफ आवाज़ बुलंद ना कर सके. सन 1948 में इजराइल बनने के बाद इन अरब ममालिकों ने नाम भर के लिए इजराइल की मुखालिफत की और मौका मिलते ही इजराइल से हार मान कर उससे मुहाएदा कर लिया जिसमे मिस्र (Egypt) और जॉर्डन सबसे आगे निकले.

आज जब यमन में अन्सारुल्लाह को अवामी मकबूलियत हासिल होने के बाद सऊदी के चुने हुए प्रेसिडेंट, हादी मंसूर, को लोगो ने बहार का रास्ता दिखाया तो सऊदी ने इन्ही तमाम पिठ्ठू ममालिक की मदद से यमन के मासूम लोगो पर हमला कर दिया.

इसके दूसरी तरफ ईरान हर उस गिरोह की खुल कर मदद कर रहा है जो इजराइल और उसके साथियों के खिलाफ काम कर रहे है. इसके बदले में ईरान पर आलमी ताक़तों ने एक साथ मिल कर शदीद पाबंदिया (sanctions) डाले यहाँ तक की ईरान को अपना आयल और गैस बेचने पर भी पाबंदिया लगा दी. लेकिन अयातुल्लाह खामेनई की रहबरी में ईरान और ईरानी अवाम ने ज़ालिम ताक़तों की एक ना चलने दी और दुनिया को बता दिया की हम हमेशा मज़लूम के साथ रहेंगे और ज़ालिम के खिलाफ.

इस्लामी इन्केलाब के बानी, इमाम खुमैनी (अ.र) ने दुनिया के मुसलमानों को तमाम मजलुमीन की हिमायत में आवाज़ बुलंद करने के लिए माहे रमज़ान के आखरी जुमे को, जिसे हम जुमातुल विदा कहते है, यौम-ए-क़ुद्स मानाने की दावत दी है. इस रोज़ सारे आलम में, ना सिर्फ मुसलमान बल्कि ग़ैर मुस्लिम भी मजलुमीन के सपोर्ट में रास्तो पर आ कर आलमी ताक़तों के खिलाफ अपने ग़म और गुस्से का इज़हार करते है.

आलमी ताक़ते और उनके साथी ममालिक आज के दौर में हो रहे उथल पुथल को शिया सुन्नी झगडे की शक्ल में पेश करने की कोशिश में लगे हुए हैं. कभी वो इराक में हो रहे अवाम और ISIS के बिच की जंग को शिया सुन्नी लड़ाई कह कर बुलाते है; तो कभी यमन पर हुए सऊदी हमले को; कभी सीरिया में हो रहे असद हुकूमत और ISIS की लढाई को शिया सुन्नी जंग का नाम देते है. ऐसी सूरत में हमें देखना होगा की इन सब के पीछे क्या माजरा हैं.

अगर ध्यान दे कर देखा जाए तो इन सब मसलो में एक तरफ वो गिरोह शामिल है जो आलमी ताक़तों और उनके साथियों के खिलाफ मोक़ावामत (रेजिस्टेंस) कर रहा है और दूसरी तरफ आलमी ताक़त या उनके पिठ्ठू मौजूद हैं. इराक में ISIS इन्ही आलमी ताक़तों की बनाई गई ईजाद है वही सीरिया में भी वोही हाल है. यमन में अन्सारुल्लाह अवाम की ताक़त है तो सऊदी अमेरीका सहारे से इन पर जबरन अपना चुना हुआ प्रेसिडेंट थोपने की ज़िद पर अडा हुआ हैं.

इन सब से ये साफ़ ज़ाहिर है की आलमी सतह पर लढाई शिया सुन्नी की नहीं है बल्कि लढाई रेजिस्टेंस और एंटी रेजिस्टेंस फोर्सेज के बिच चल रही है. ऐसे में हमारी ज़िम्मेदारी बनती है की हिन्दुस्तान और अपने शहर / गाओ की सतह पर कोई ऐसा काम ना करे जिससे आपस में ताफरेका हो. साथ ही हमें कोशिश करते रहनी चाहिए की अम्न पसंद लोगो के बिच, भले ही वो किसी भी मसलक या मज़हब से हो, बातचीत और मिलने जुलने का दौर चलता रहे.

अल्लाह हमें एक और नेक बनने की और एक साथ मिल कर दुश्मन का मुकाबला करने की तौफीक अता करे और मोक़ावामत की आलमी रह्बरियत के बताए हुए नक़्शे क़दम पर चलने की तौफिक दे.

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