ऐसा
क्यों है की, यमन के मसले और यमनी रेजिस्टेंस की अहमियत फिलिस्तीन और फिलिस्तीनी
रेजिस्टेंस से अगर ज्यादा नहीं तो उससे कम तो बिलकुल नहीं है?
- क्यूंकि, यमनी अवाम अपने मुल्क के आज़ादी और एक्जहती की हिफाज़त कर रही है
- क्यूंकि वो अपने उस आज़ादी की हिफाज़त कर रही है जो उन्होंने अपने ऊपर अमेरीका और इजराइल की बनाए हुए नकली प्रेसिडेंट को बहार कर के हासिल करी है
- क्यूंकि वो सऊदी अरब से लड़ कर अपनी आज़ादी की हिफाज़त कर रही है; वो सऊदी अरब जो अमेरीका और इजराइल का एजेंडा मुस्लिम दुनिया में मुस्लिम लोगो के मफाद के खिलाफ जा कर नाफ़िज़ करता है
- क्यूंकि यमन एक ऐसा मुल्क है जो अपनी आज़ादी की लड़ाई एक ही वक़्त में सऊदी, अमेरीका, इजराइल, बहरैन, मिस्र और दुसरे अरब ममालिक के खिलाफ अकेला लड़ रहा है
- क्यूंकि यमनी अन्सारुल्लाह और उनके लीडर सय्यद अब्दुल मालिक अल-हौसी अपनी रहनुमाई के लिए रेजिस्टेंस के मरकजी रहबर की तरफ रुजू करते है जो “इमाम खामेनई” है
- क्यूंकि यमनी अन्सारुल्लाह और उनके लीडर सय्यद अब्दुल मालिक अल-हौसी लेबनान की हिजबुल्लाह में मुकम्मल भरोसा करते है और उन के पैरो है
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मेरे एक दोस्त ने बताया:
2008 के दिनों में मुझे
इतनी अच्छी अरबी नहीं आती थी, लेकिन फिर भी मैं कोशिश करता था की सय्यद हसन
नसरल्लाह की स्पीच को समझ सकू, और इसके लिए मैं उनके शोर्ट क्लिप्स सुना करता था.
मेरा एक यमनी दोस्त था,
जो मेरे साथ इंडिया के एक कॉलेज में था और हॉस्टल में मेरे सामने के कमरे में रहा
करता था. एक रोज़ मैं उसके पास आया और उससे सय्यद नसरल्लाह की एक क्लिप के
ट्रांसलेशन में मदद मांगी, और वो क्लिप थी जिसमे सय्यद ने “लब्बैक या हुसैन” का
मतलब बता रहे है.
वो यमनी भाई भी सय्यद की
उस क्लिप को देखने लगा और जैसे ही क्लिप ख़त्म हुई, वो अपने आप पर काबू नहीं रख सका
और जारो-कतार रोने लगा.
मेरे लिए ये हैरानी की
बात थी क्युकी मुझे पता था की वो सुन्नी शाफई मसलक से है और यमनी होने के नाते
सय्यद नसरल्लाह की बात से इतना मुतास्सिर होना आम बात नहीं थी. अपने आसू पोछने के
बाद उसने कहा की सय्यद हसन की कोई भी स्पीच ऐसी नहीं है जिसे मैं और मेरी फॅमिली
देखे और हमारे आँखों से आसूं ना जारी हो रहे हो.
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इस साल 2015 में जब मैं
रहबर-ए-मोअज्ज़म अयातुल्लाह खामेनेई की इमाम खुमैनी की बरसी की मौके पर स्पीच सुनने
गया तब लोगो के उस हुजूम में मेरे बाजू में एक यमनी मेहमान बैठे हुए थे. वो उस भीड़
में ठीक से बैठ नहीं प् रहे थे इसलिए रहबर की पूरी स्पीच में (1.5 घंटे) हाफ
स्टैंडिंग पोजीशन में ही थे. उन्हें फारसी के एक लफ्ज़ भी नहीं समझ में आ रहा था
लेकिन वो रहबर को अपनी पलके झपके बगैर लगातार देख रहे थे.
जब कभी रहबर अपनी स्पीच
में कुरान की आयातों का ज़िक्र करते, मैं उन यमनी मेहमान की आँखों में चमक को महसूस
कर सक रहा था और वो ज्यादा घौर से स्पीच को सुनने लगते क्युकी कुरान की आयते उनकी
समझ में आ रही थी.
और जब कभी मजमे में “खामेनई
रहबर” और “मर्ग बर अमेरीका” के नारे लगते, वो बहोत जोश और खरोश से नारे लगाते.
अपने मुस्लमान भाई के इस जज्बा-ए-इमानी को देख कर बहोत अच्चा लग रहा था और दिल को
तकवियत पहुच रही थी, अल्हम्दुलिलाह.
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