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Thursday, 14 September 2017

सय्यद हसन नसरल्लाह की बायोग्राफी


  • सय्यद हसन नसरल्लाह 31 अगस्त 1960 को पैदा हुए। वह दक्षिण लेबनान के अल-बजोरिया गांव से आते है। उनके पिता सय्यद अब्दुल करीम नसरल्लाह हैं। सय्यद हसन परिवार में सबसे बड़े है जिसमें तीन भाई और पांच बहनें शामिल हैं।

  • उनका जन्म और निवास "अल करन्तेना" के पड़ोस में था, बेरूत के पूर्वी उपनगरीय इलाके में सबसे वंचित और सबसे गरीब इलाकों में से एक.

  • उन्होंने अपनी प्राथमिक शिक्षा "अल-क़िफा" निजी स्कूल में समाप्त करी और सीन अल-फेल क्षेत्र में "अल-थानुविया अल-तराबावादी" स्कूल में अपनी सेकेंडरी और हायर सेकेंडरी पढ़ाई जारी रखी।

  • अप्रैल 1975 जब लेबनान में गृहयुद्ध (सिविल वार) भड़का हुआ था, उस वक़्त उनका परिवार अल-बज़ोरिया में लौटा, जहां उन्होंने अपनी इंटर की पढाई जारी रखी। अपनी छोटी उम्र के बावजूद उन्हें अल-बज़ोरियाह गांव में अल अमल आंदोलन में चीफ कोऑर्डिनेटर नियुक्त किया गया।

  • अपनी जवानी से ही उनमे मज़हबी तालीम के लिए खास दिलचस्पी थी और वे इमाम सय्यद मुसा अल-सद्र से काफी मुतास्सिर थे

  • जब वह लेबनान के दक्षिण के तैर इलाके में थे, उस समय वह सय्यद मुहम्मद अल-घरवी से मिले, जिन्होंने 1976 में नजफ अशरफ के हव्ज़ा में शामिल होने में उनकी मदद की। इसलिए, उन्होंने नजफ़ अशरफ जाते वक़्त सय्यद अल-घरवी की सिफारिश का ख़त अपने साथ रखा जो शहीद सय्यद मुहम्मद बाकिर अल-सद्र के नाम था, जिन्होंने उनके लिए खास दिलचस्पी दिखाई; शहीद सद्र ने उन्हे नए शागिर्द की तरह सय्यद अब्बास अल-मुसावी की देखरेख में रहने को कहा।

  • 1978 में, मज़हबी मदरसों के खिलाफ ईराक में तकलीफ बढने लगी थी और सद्दाम की सरकार बहुत ज़ुल्म कर रही थी, इसके चलते उन्होंने ख़ामोशी से इराक छोड़ कर लेबनान कर रुख किया। लेबनान में, वह अल-इमाम अल-मुन्तज़र (अ.स) हव्ज़े में शामिल हो गए; इस मदरसे को शहीद सैय्यद अब्बास अल-मुसावी ने कायम किया था। वहां उन्होंने अपनी पढ़ाई जारी रखी।

  • बालबेक के मदरसे में उनकी पढाई के अलावा, सय्यद नसरल्लाह ने अल-बिका इलाके में अल अमल आंदोलन में अपनी सियासी गतिविधियां शुरू की, जहां उन्हें 1979 में अल-बिका इलाके के अल अमल आंदोलन का पोलिटिकल ऑफिसर और पोलित ब्यूरो का सदस्य नियुक्त किया गया।

  • 1982 में अल अमल आंदोलन में "इजरायल" हमले से पैदा होने वाले पोलिटिकल बदलाव और सेना के विकास पर पोलिटिकल लीडरशिप से टकराव होने के नतीजे में सय्यद हसन नसरल्लाह के साथ साथ बहुत से अफसर और वालंटियर्स ने अल अमल आंदोलन को छोड़ दिया
  • उन्होंने 1982 में हिजबुल्लाह में शुरुआत से ही कई जिम्मेदारियों में भाग लिया, जिसमें ज़ियोनिस्ट आक्रमण और लेबनान में इस्लामिक रेजिस्टेंस आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

  • उन्होंने 1985 तक बालबैक के मदरसे में अपनी पढाई जारी रखी, और साथ में अल-बिक़ा क्षेत्र में हिज्बुल्ला में अपनी जिम्मेदारी को भी निभाते रहे, जिसके बाद वह बेरूत चले गए जहाँ उन्होंने कई जिम्मेदारियों में भाग लिया

  • 1987 में, हिज्बुल्ला में मुख्य कार्यकारी अधिकारी की पोस्ट शुरू की गई; जिसपर सय्यद हसन नसरल्लाह को चुना गया और साथ ही उन्हें कंसल्टेटिव कौंसिल (हिजबुल्लाह में सबसे ऊपर का पैनल) में मेम्बरशिप के साथ यह जिम्मेदारी दी गई।

  • 1989 में, वह फिर से हव्जा में शामिल होने और अपनी पढ़ाई जारी रखने के लिए ईरान के कुम मुक़द्दस शहर के लिए चले गए। हालांकि, कंसल्टेटिव कौंसिल के रिक्वेस्ट पर अमल करते हुए, कुछ बुनियादी अफसरों और वालंटियर्स के मुतालेबे पर और उस समय लेबनान के नाज़ुक पोलिटिकल और क्रिटिकल हादसों की वजह से अपनी जिम्मेदारी पूरी करने के लिए वे एक साल के बाद वापस लेबनान लौट आए।

  • 1992 में, कंसल्टेटिव कौंसिल के मेम्बेर्स ने इज्तेमाई तौर से उन्हें हिजबुल्लाह के जनरल सेक्रेटरी के रूप में चुन लिया, जहा उनके पहले शहीद सय्यद अब्बास अल-मुसावी जनरल सेक्रेटरी रह चुके थे, जिन्हें 16 फरवरी, 1992 को तीफहता गांव में "इस्राइली" सेना के हाथो शहीद कर दिया गया, जब वह दक्षिण लेबनान के जेब्शीत गांव से लौट रहे थे, जहां वह शहीद शेख राघेब हर्ब की याद में उनकी बरसी के प्रोग्राम में भाग लेने गए थे। इस हादसे में सय्यद अब्बास मूसवी के साथ उनकी बीवी, 6 बरस के बच्चे और उनके दो बॉडी गार्ड भी शहीद हो गए थे।

  • पार्टी के हेड क्वार्टर में जनरल सेक्रेटरी की पोस्ट पर अपनी ज़िम्मेदारी के दौरान सय्यद नसरल्लाह की निगरानी में इस्लामी रेजिस्टेंस आंदोलन ने इजराइली सेना के खिलाफ कई जंग और मुहाज़ का सामना किया, जिनमें से सबसे महत्वपूर्ण जुलाई 1993 में "सेटलिंग अकाउंट्स" और अप्रैल 1996 में "बेंच ऑफ क्रैजर" जैसे बहोत ही ज़रूरी ऑपरेशन को अंजाम दिया गया, जिन्हें इजराइल के खिलाफ हिज्बुल्लाह के सर के ताज में हीरे की तरह से देखा जाता है और जिसकी वजह से 2000 में इजराइल को लेबनान छोड़ कर भागना पड़ा.

  • सेक्रेटरी जनरल की पोस्ट पर रहते हुए सय्यद नसरल्लाह ने हिजबुल्लाह को काफी आगे बढाया और लेबनान की आंतरिक सुरक्षा के साथ साथ पोलिटिकल मैदान में भी आगे बढाया जिसके नतीजे में हिजबुल्लाह ने आम चुनाव में भाग लिया और 12 सीटें भी जीती. लेबनान में सिविल वर के खात्मे के बाद यह पहला चुनाव था.

  • सितंबर 1997 को दक्षिण लेबनान के जब्ल अल-राफी में इसरायली सेना के खिलाफ एक मुहाज पर उनके सबसे बड़े बेटे मुहम्मद हादी शहीद हो गए।

  • सय्यद हसन नसरला की शादी फातिमा यासीन से हुई है और उनके पांच बच्चे हैं: (शहीद हादी), मुहम्मद जवाद, ज़ैनब, मुहम्मद अली और मोहम्मद महदी।

  • 1982 से इसरायली सेना के लेबनान में कब्ज़े का सिलसिला जारी ही था लेकिन हिजबुल्लाह की फ़ौज ने दक्षिण लेबनान में इसरायली सेना को इतना परेशान किया की सन 2000 में मजबूरन इसरायली सदन को रेज़ोलुशन पास कर के अपनी सेना को लेबनान से बाहर बुलाना पड़ा. यह पहली बार हुआ था की इजराइल अपनी फ़ौज को किसी दुसरे देश की ज़मीन से बेईज्ज़त हो कर पीछे ले रहा था.

  • इस बेईज्ज़ती का बदला लेने के लिए इजराइल ने बहुत सी चाल चली. यूनाइटेड नेशन ने इजराइल और लेबनान की सरहद पर UNIFIL के नाम से अपनी फौजे बैठा दी ताकि हिजबुल्लाह को इसरायली से दूर रखा जा सके, लेकिन हिजबुल्लाह की कमियाबी ख़त्म होने का नाम नहीं ले रही थी.

  • 2006 में हिजबुल्लाह ने लेबनान की सरहद में दाखिल होने वाले 2 इसरायली सैनिको को गिरफ्तार कर लिया जिसके बदले में हिजबुल्लाह ने बहुत से ऐसे लोगो की रिहाई की मांग करी जिसे आज़ाद करने के लिए इजराइल कभी राज़ी नहीं हो सकता था, जिसमे सबसे ऊपर शहीद सामीर कुंतार का नाम था.

  • इस गिरफ़्तारी के जवाब में इजराइल ने लेबनान पर हमला कर दिया. इस हमले के कुछ मकसद थे, वो इस तरह थे:


  1. गिरफ्तार किये हुए इसरायली सैनिको को आज़ाद करवाना
  2. हिजबुल्लाह के जनरल सेक्रेटरी, सय्यद हसन नसरल्लाह को शहीद करना
  3. हिजबुल्लाह के टीवी चैनल, अल मनार, का प्रसारण रोकना
  4. लेबनान में हिजबुल्लाह के नेटवर्क को ख़त्म करना
  5. लेबनान के अन्दर बड़े पैमाने पर तोड़ फोड़ कर के नुकसान करना ताकि लेबनान के लोगो के दिलो में हिजबुल्लाह की नफरत बढ़ सके


  • यह जंग 33 रोज़ तक चली, लेकिन इजराइल इन मकासिद में से एक भी मकसद को हासिल नहीं कर सका.
  • इसके उलट सारी दुनिया के सामने इजराइल की पोल खुल गई. उसके मेर्कावा टैंक, जिसपर इसरायली फ़ौज को बहुत नाज़ था, उसे हिजबुल्लाह ने चुन चुन कर मारा. इसरायली समुद्री जहाज़ को समंदर में ख़त्म कर दिया और इसरायली फ़ौज ने डर के मारे लेबनान की ज़मीन पर क़दम तक नहीं रखा

  • इस जंग से हिजबुल्लाह का क़द सारी दुनिया में और खास कर मुसलमानों में बहुत बढ़ गया और इजराइल का भूत उतर गया

  • इस जंग के बाद से आज तक इजराइल ने बहुत कोशिश और बहाने तलाश किये की हिजबुल्लाह पर सीधे हमला किया जाए, लेकिन इसमें कमियाबी नहीं मिल सकी

  • सय्यद हसन नसरल्लाह की लीडरशिप में इस जंग में हिजबुल्लाह ने बहुत बड़ी कमियाबी हासिल की

  • दुश्मन ने सीधा हमला कर के देख लिया की कमियाबी नहीं मिल सकी तो 2010 के बाद ISIS की शक्ल में लेबनान और सीरिया में कब्ज़ा करने की कोशिश करने लगा

  • लेबनान में बहुत गिरोह और सियासतदानो की मुखालिफत करते हुए हिजबुल्लाह ने सीरिया और इराक में जा कर वहां की मकामी फ़ौज के साथ मिल कर ISIS से मुकाबला किया

  • इसका फाएदा यह हुआ की ISIS लेबनान को ज्यादा नुकसान नहीं पंहुचा सका और इराक सीरिया में ही उसको शिकस्त देने में हिजबुल्लाह कामियाब रहा

  • आज की तारीख में हिजबुल्लाह एक अज़ीम इस्लामी रेजिस्टेंस गिरोह है जो इजराइल के सर चढ़ कर बोलता है और सय्यद हसन नसरल्लाह सारे मिडिल ईस्ट की आवाज़ बन कर दुश्मनों को लोहे के चने चबवा रहे है

  • अल्लाह से दुआ है की सय्यद हसन नसरल्लाह की हमेशा हिफाज़त करे और इनके दुश्मनों, भले ही वो किसी भी गिरोह में हो, उन्हें नीस्तोनाबूद करे.

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