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Tuesday 6 October 2015

क्या ये तीसरे वर्ल्ड वार की शुरुवात है?




2011 में अरब स्प्रिंग आने के बाद से जैसे मिडिल ईस्ट का नक्षा ही तब्दील हो गया. अरब ममालिक में एक के बाद दुसरे मुल्क में हुकूमत बदलने लगी और वक़्त ऐसे दौड़ने लगा के उसे पहिये लग गए हो. एक सानीहे का जाएजा लेने के पहले दूसरा सनीहा होने लगा. एक फ़िक्र रखने वाले मुल्क साथ मिल कर सामने आने लगे और दुनिया जैसे दो गिरोह में बट गई. 

सबकी नज़रे जा कर एक मुल्क पर टिकी हुई है जिसका नाम “सीरिया” है; जहाँ पर सद्र असद का खानदान पिछले कुछ दशको से हुकूमत कर रहा है. सीरिया एक ऐसा मुल्क है जहाँ पर सभी मसलक-ओ-मज़हब के लोग मिल कर रहते है. 1960 के अंदरूनी लड़ाई के नतीजे में बशार अल असद के बाप, हाफिज अल असद ने हुकूमत अपने हाथो में ले ली थी; जिसके बाद से 2011तक सीरिया में कोई बड़ा मामला पेश नहीं आया. सीरिया इतना ताक़तवर हो गया था की उसकी फौजे कई सालो तक लेबनान के उपरी हिस्से को अपने कब्ज़े में लिए हुए थी और सीरिया इजराइल से सीधे टक्कर ले रहा था.


इजराइल का कट्टर दुश्मन होने का खामियाज़ा सीरिया को उठाना पड़ा. 2011 के अरब स्प्रिंग के वक़्त मगरीबी ताक़तों ने सीरिया में लोगो को उकसाया और उन्हें पैसो और हथियारों से खुली मदद की. इस मदद में सिर्फ मगरीबी ताक़ते शामिल नहीं थी, बल्कि मिडिल ईस्ट के अरब ममालिक ने भी बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया, जिसमे सऊदी अरब, बहरैन, क़तर और कुवैत के नाम शामिल है. तुर्की ने भी अपनी तरफ से भरपूर साथ दिया की सीरिया में हुकूमत का तख्ता पलट हो जाए.

इन मुल्को ने सीरिया में निकले एक छोटे से प्रोटेस्ट को बड़े सिविल वार में तब्दील कर दिया. पैसो और हथियारों की सप्लाई में कोई कसर नहीं छोड़ी गई और हर मुमकिन कोशिश की गई के सीरिया में असद की हुकूमत को उखड फेका जाए. लेकिन ये इतना आसान साबित नहीं हुआ. असद की फौजों ने मामले को सही तरीके से संभाले रखा.


इन सब वारदात के बिच असद को कुछ ऐसे मुल्को और गिरोहों का साथ मिला जो इजराइल के खिलाफ एक अरसे से जंग लड़ रहे थे; जिसमे लेबनान का गिरोह हिजबुल्लाह और जम्हुरिये इस्लामी इरान शामिल थे. हिजबुल्लाह ने लेबनान की सरहदों को उन देह्शत्गर्दो से महफूज़ रख जिन्हें मगरिब ने पैसो और हथियारों के जोर पे असद को गिराने के लिए पैदा किया था. और ईरान के स्पेशल एडवाइजर ने सीरियन फौजों को हमला करने की प्लानिंग बनाने में मदद करी.

अरब और मगरिब की मदद से सीरिया में सिर्फ बागियों को मदद नहीं मिली बल्कि एक ऐसे गिरोह ने जनम लिया जिसने इंसानियत को अन्दर से हिला दिया. इस गिरोह ने इस्लाम का नाम इस्तेमाल कर के हर वो जूर्ण अंजाम दिए जिससे इस्लाम ने दूर रहने का हुक्म दिया है. इस गिरोह ने पहले अपना नाम इस्लामिक स्टेट इन इराक एंड शाम रख, जिसे बाद में तब्दील कर के “इस्लामिक स्टेट” कर दिया. ISIS ने सिर्फ सीरिया के इलाकों पर कब्ज़ा नहीं किया बल्कि 2014 में इराक में हमला कर के सीरिया से लगे हुए इराक को भी अपने कब्ज़े में ले लिया. हमला इतना शदीद था की बग़दाद से 40 कि.मी. दूर फल्लुजा पर भी ISIS का कब्ज़ा हो गया.

अब सीरिया में असद की हुकूमत बागियों के साथ साथ ISIS से भी जंग करने लगी. अगर ज़मीनी हकीक़त पर नज़र डाले तो बागी ISIS का ही एक हिस्सा है और दोनों साथ मिल कर असद हुकूमत को गिराने के लिए काम कर रहे है.

यहाँ पर सवाल ये उठता है कि “मगरिब, अरब ममालिक, ISIS और बागी मिल कर असद की हुकूमत गिराने के लिए इतनी कोशिश क्यों कर रहे है?”
जैसा की पहले बताया गया की सीरिया की सरहदे इजराइल से मिलती है और सीरिया पहले से ही इजराइल का शदीद दुश्मन रहा है. अभी भी जितने भी गिरोह इजराइल के खिलाफ मोहिम संभाले हुए है उन्हें सीरिया का सपोर्ट हासिल है. इजराइल उस वक़्त तक चैन की नींद नहीं सो सकता जब तक सीरिया में असद की हुकूमत तब्दील हो कर इजराइल का पसंदीदा शख्स सीरिया में हाकिम नहीं बन जाता.

इन सब के चलते, दो गिरोह साफ़ साफ़ दिखाई देने लगे है. एक तरफ अमेरीका की सरपरस्ती में अरब ममालिक जिसमे सऊदी अरब, क़तर कुवैत, बहरैन शामिल है; यूरोपियन ममालिक जैसे फ्रांस, बर्तानिया, तुर्की और मिडिल ईस्ट में अमेरीका का सबसे बड़ा दोस्त इजराइल शामिल है. और दूसरी तरफ इस गिरोह के बनाए गए आतंकवादी गिरोह की मार खाए हुए सीरिया और इराक के साथ लेबनान का गिरोह हिजबुल्लाह, ईरान और रूस शामिल हो गए है.

सीरिया मामले में दो तुको में बटती दुनिया खतरे की घंटी है. पहले के दो वर्ल्ड वार्स में भी दुनिया ऐसे ही दो गिरोह में बट गई थी, जिसने बर्दाश्त के बहार नुकसान पहुचाने वाले दो बड़े जंगो को जनम दिया. आज फिर से दुनिया दो गिरोह में तकसीम हो रही है.

इस मौके पर हमें देखना होगा की कौन सा गिरोह सही है और सा गलत ताकी हम सही का साथ दे सके. एक तरफ इजराइल की हिफाज़त में आए हुए मगरीबी और अरब ममालिक और दूसरी तरफ खुद अपनी हिफाज़त कर रहे मुल्क.

बात पानी की तरह साफ़ है लेकिन मीडिया और जज्बाती लोग आकर इसे फिर्कावारियत का रंग दे कर लोगो के सामने पेचीदा बना रहे है. उम्मत को आज आखे खोलने की ज़रूरत है और फिरकापरस्ती छोड़ कर हक का साथ देने और बातिल के खिलाफ एक होने की ज़रूरत है.

तहरीर: अब्बास हिंदी

1 comment:

  1. Russia ka syria me entry krne ka ek reason ye hoskta he k wo direct amrika ko chek n mate krna chahta isliye k amrika ne Ukraine me Russia k khilaf morcha khola he to Syria me Russia ne amrika k khilaf...

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