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Wednesday 29 April 2015

Nepal me bhukamp aaya; Upar wale ki madad kyu nahi aai?

नेपाल में भूकंप के झटके आए; उपरवाले की मदद क्यों नहीं आई?

नेपाल में भूकंप के झटके आते ही कुछ लोग खुदा / भगवान / गॉड पर उँगलियाँ उठाने लगे और क़ुरआन, वेद और बाइबिल को गलत प्रूव करने की होड़ में लग गए। अस्ल में देखा जाए तो कुदरती मुश्किलात एक सिस्टम के तहत आती है जिसे खुद बनानेवाले ने कुछ इस तरह से बनाया है की इसका होना बहोत ज़रूरी है और इंसान इससे सबक हासिल करे और अपनी ज़िन्दगी को सुधारे. इन कुदरती मुसीबतों से जान माल का नुकसान होना स्वाभाविक बात है. लेकिन दूसरी तरफ मज़हब इंसान को दुनियावी ज़िन्दगी से ऊपर उठकर देखने के लिए प्रोत्साहित (Motivate) करता है.

जहाँ तक खुदा / भगवान / गॉड के लोगो को बचाने की या मदद करने की बात है, उसने इंसानों को अक्ल दे कर आपस में मेल जोल बना कर रहने को कहा है, ताकि दुनिया रहने के लिए एक अच्छी जगह बन सके. अगर मुसीबत के वक़्त खुदा / भगवान / गॉड मदद के लिए आजाए तो इंसान आपस में मदद की भावना को छोड़ कर समाजी ज़िन्दगी से दूर चला जाएगा. हर मज़हब ये बात सिखाता है की इंसान को एक दुसरे की हमेशा मदद करनी चाहिए और जब कुदरती मुसीबत आए तब और ज्यादा एक दुसरे का ख्याल रखना ज़रूरी हो जाता है.

ऊपरवाले के इसी करम का बदला हम नहीं चूका सकते जो उसने हमें आपसी मुहब्बत और भाईचारे के रूप में दिया है. अब जो लोग ये सोचते और कहते है की ऊपर वाला मौजूद ही नहीं है या एक्सिस्ट नहीं करता; ऐसे हजरात इस मुश्किल का शिकार बन कर बहाने तलाशने लगते है और ऊपरवाले को या उस पॉवर को मानने वालो को तंज़ (taunt) करने लगते है.

जबकि अगर देखा जाए तो कुदरती मुसीबतें हमें खुद उपरवाले से और आपस में एक दुसरे से जोड़ने में बहोत कारगर साबित होती है. यही वह समय होता है जब इंसान रंग, नस्ल, मज़हब के दाएरे को छोड़ कर एक दुसरे की मदद करता है और अगर ऐसा जज्बा अपने अन्दर रखने में कामियाब हो जाए तो ये कुदरती मुसीबत एक
नेमत (reward) से कम नहीं होगी. इंसान की ज़िन्दगी में प्यार, मोहब्बत और भाईचारा सबसे ज्यादा ज़रूरी और हर मज़हब ने इसे बहोत ऊँचे मकाम पर रखा है, इसे हमें समझने की ज़रूरत है.

अब अगर कोई अपनी ज़िन्दगी को खुद अपने हिसाब से जीने की ठान ले और समाजी ज़िन्दगी को इग्नोर करे और दुनिया के कानून / नियम को सिर्फ इसलिए न माने की वो उपरवाले ने बनाए है, तो फिर इसमें मज़हब की गलती नहीं बल्कि उस आदमी की गलती है जिसकी सोच में प्रॉब्लम है. हमें चाहिए की हादेसात
को खुली हुई आँखों से देखे और उसके नतीजो को अच्छे से टटोले, हम ज़रूर देखेगे की बहोत सी चीज़े अच्छे के लिए होती है और दुनिया को रहने के लिए पहले से ज्यादा अच्छी जगह बना देती है.

यहाँ इस बात का ध्यान रखे की कुदरती मुसीबतों के ज़रिये जो जान और माल का नुकसान हुआ उसे कम आंका जा रहा है या उससे कोई खुश है, बल्कि यह बात बताने की कोशिश की जा रही है की ऐसी हालत में हमसे क्या चाहा जा रहा है और वह करने से हमें और समाज को कैसे फाएदा पहोंच सकता है.

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