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Tuesday 14 April 2015

Irani aur Arab leaders me antar

एक अरब पत्रकार की नज़र में,
ईरानी और अरब नेताओं में
अंतर?

" स्विट्ज़रलैंड के शहर लूसान में ईरान और गुट पांच धन एक के
बीच परमाणु समझौते की रूपरेखा पर हुई सहमति की विश्व
भर में विभिन्न आयामों से समीक्षाओं का सिलसिला
जारी है। विश्व भर में राजनीतिक गलियारे जहां इसके
राजनीतिक एवं आर्थिक आयामों पर चर्चा कर रहे हैं वहीं
कुछ धड़े इसे अपने और इलाक़े के हितों के परिप्रेक्ष्य में देख रहे
हैं। जहां कुछ लोग इसे अच्छा बता रहे हैं वहीं कुछ लोगों
का मानना है कि यह एक बुरी ख़बर है।

 विशेष रूप से
ज़ायोनी शासन और अमरीका में ज़ायोनी लॉबी इसे
ख़तरनाक समझौते के रूप में पेश करने का भरपूर प्रयास कर
रही है। इन कुप्रयासों में कुछ अरब देश ज़ायोनी लॉबी से
भी दो क़दम आगे बढ़कर इसे क्षेत्र के लिए ख़तरा क़रार देने में
पूरी ताक़त लगा रहे हैं। अमरीका में रिपब्लिकन्स ने परमाणु
वार्ता की विफलता के लिए एड़ी चोटी का ज़ोर
लगाया और व्हाईट हाऊस के विरोध के बावजूद ज़ायोनी
शासन के प्रधान मंत्री नेतनयाहू को कांग्रेस में भाषण के
लिए आमंत्रित किया, जहां उनका बहुमत है। अरब के
प्रसिद्ध पत्रकार और लंदन से प्रकाशित होने वाले
अंतरराष्ट्रीय समाचार पत्र रायुलयौम के मुख्य संपादक
अब्दुलबारी अतवान ने भी इस पर अपने विचार पेश किये हैं।


***

इस्राइली प्रधानमंत्री नितिनयाहू की नीचता के बारे में
किसी को कोई शंका नहीं है लेकिन यह नीचता इस हद
तक पहुंच जाएगी कि वह छह विश्व शक्तियों और ईरान के
बीच होने वाले परमाणु सहमति पर आपत्ति करें और यह
मांग करें कि परमाणु समझौते में इस्राईल को औपचारिक
मान्यता दिए जाने की शर्त भी शामिल हो, यह किसी
भी तर्क पर पूरा नहीं उतरती। यह नितिनयाहू होते कौन
हैं जो इस तरह की शर्त रखें।

वह किस अधिकार के तहत ईरान से मांग कर रहे हैं कि वे
इस्राईल को स्वीकार करे? और अगर ईरान ने ऐसा न किया
तो वह क्या बिगाड़ लेंगे?

अस्ल में वह एक समय घायल कुत्ते की तरह भौंक रहे हैं और
कोई भी उनकी आवाज पर कान धरने पर तैयार नहीं है।
इस अंहपूर्ण बयान पर अमेरिकी विदेश मंत्रालय की
प्रवक्ता 6मेरी हार्फ की तत्काल प्रतिक्रिया सामने
आयी कि ईरान इस्राईल को एक देश स्वीकार करना और
ईरान के परमाणु मुद्दे पर वार्ता दोनों अलग बातें हैं।

यह दो टूक प्रतिक्रिया वास्तव में नितिनयाहू को
अमेरिका की ओर से यह निर्देश है कि वह अपना मुंह बंद रखें।
वह ज़माना बीत गया जब वह बड़ी शक्तियों पर अपनी शर्तें
थोप सकते थे।

इस्राइली प्रधानमंत्री को तीन बातों की वजह से बड़ी
सख्त चिंता है। पहली बात तो यह है कि उन्हें आशंका है
कि कहीं विश्व समुदाय तेल अवीव पर एनपीटी के नियमों
को लागू करना शुरू न कर दे। दूसरी बात यह है कि ईरान
क्षेत्र की सबसे बड़ी शक्ति में परिवर्तित होने जा रहा है
और परमाणु समझौते के परिणामस्वरूप ईरान पर लगाए गये
प्रतिबंध समाप्त हो जाएंगे।

तीसरी बात यह है कि कहीं मिस्र, तुर्की और सऊदी अरब
जैसे देश भी शांतिपूर्ण परमाणु कार्यक्रम शुरू न कर दें। ईरान
जो तीस साल से अधिक समय से अमेरिकी प्रतिबंधों का
सामना करने के बावजूद परमाणु कार्यक्रम को विकास
की चोटी तक पहुंचाने और बड़ी शक्तियों से अपनी शर्तें
मनवाने में सक्षम हो गया और साथ ही इराक, सीरिया,
लेबनान, यमन और बहरैन में इसका खासा प्रभाव हो गया है
तो आर्थिक प्रतिबंध हट जाने के बाद यह देश कहाँ पहुँच
जाएगा!

 नितिनयाहू और उनके साथ कुछ अरब नेता बड़ी चिंता
व्यक्त कर रहे हैं कि मध्य पूर्व का मानचित्र बदल रहा है।
परमाणु समझौता हो जाने के बाद ईरान शाही शासनकाल
में क्षेत्र में अमेरिकी पुलिस का जो रोल अदा करता था
वह रोल अदा नहीं करेगा क्योंकि इस देश के वरिष्ठ नेतृत्व
में राष्ट्रीय सम्मान की भावना है और उनके अपने उच्च
राजनीतिक, आर्थिक और रक्षा लक्ष्य हैं, यानी वह
किसी भी देश का अधीन नहीं रहेगा।

अमेरिकी राष्ट्रपति परमाणु समझौते को अपनी विदेश
नीति की एक बड़ी सफलता के रूप में दर्ज कराना चाहते हैं।
इस तरह शायद उन्हें मिलने वाले नोबेल पुरस्कार का
औचित्य भी हो जाए। लेकिन उन्हें क्षेत्र में अपने
सहयोगियों की नाराजगी का भी अनुमान है इसलिए
उन्होंने अपने मित्र देशों के नेताओं को कैंप डेविड बुलाया
है।

परमाणु समझौते का एक बेहद सकारात्मक पहलू यह है इससे
इस्राईल के पतन के दिन आ गए हैं। अरब अधिकारियों लिए
यह समझौता उस समय अच्छा साबित हो सकता जब वह
इससे सबक लें, ईरानी राजनीति और वार्ता शक्ति से सबक
लें और उसी ढंग से विश्व शक्तियों से रूबरू हों।

ईरान ने तेरह साल तक बड़ी शक्तियों से वार्ता की और उसे
न तो अमेरिकी नौसैनिक बेड़े डरा सके और न विमान वाहक
पोत जबकि अरब वार्ताकार अनवर सादात कैंप डेविड में
दो सप्ताह भी प्रतिरोध नहीं दिखा सके और
फिलिस्तीनी वार्ताकार ओस्लो में चार महीने में ढेर हो
गए। यही मुख्य अंतर है।(Q.A.)

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