तक़रीबन
50 दिनो की शदीद बमबारी, जंग जिसमे 2200 फिलीस्तीनियों की शहादत और 10,000
से ज़्यादा ज़ख्मी लोग इसराइली अवाम को ये सवाल पूछने पर मजबूर कर रहे है -
इतने खून खराबे के बाद इसराइल ने क्या पाया?
इन
सब के बाद जब जंग बंदी का एलान हुआ तो गाज़ा मे लाखो लोग सड़कों पर उतर आए
और जीत की खुशियाँ मानने लगे। इसके बिलकुल खिलाफ इसराइल मे लोगो ने घरों
मे बैठ कर अपने प्राइम मिनिस्टर बेन्यामिन नेतन्याहू पर लानत मलामत करते
रहे, जिसने इसराइली अवाम से ये वादा किया था के वो फिलीस्तीनी मुक़ावमत को
निस्तोनाबूद कर देगा, लेकिन अपने मक़सद मे पहुचने मे ज़बरदस्त शिकस्त का
सामना किया। इसी जंग के दौरान नेतन्याहू की इसराइल मे रेटिंग 84% से घट कर
40% से भी नीचे चली गई। आज पूरा इसराइल, जिसमे नेता और अवाम शामिल है,
नेतन्याहू को कोस रहे है और ये एतेराफ कर रहे है के इन जंग मे इसराइल को हद
से ज़्यादा नुकसान उठना पढ़ा है।
ये
खुली हुई जंग बंदी, जो मिस्र (Egypt) मे हुई है, दर अस्ल फिलीस्तीनियों के
मांगो को पूरा कर रही है, जिसमे इसराइल ने गाज़ा के घेराओ को कुछ हद तक
खोलने पर रज़ामंदी की है जिसमे गाज़ा के समंदरी किनारो को आज़ाद करने और
राफा सरहद को खोलने पर भी हामी भरी है।
इसी
बीच इसराइली और फिलीस्तीनी डेलिगेशन्स ने मिस्र मे और मिलने की बात की है।
दुनिया से अच्छी तरह से जानती है की इसराइल इस बातचीत को अम्न और शांती से
आगे बढ़ने नहीं देगा और जल्द ही फिर से गाज़ा पर हमले के आसार पैदा हो
सकते है। पिछले कई सालो मे इसराइल का यही रवैय्या रहा है जिसमे इसराइल ने
कई UN को मुआहिदो को तोड़ कर खुद अपनी तरफ से जंग का आगाज़ कर कई मासूमो की
जाने ली है। इसकी ताज़ा मिसाल ओस्लो मुआहिदा, 2005, 08-09, 2012 और 2014
की जंगे रही है।
2014
की इस जंग के बाद आज इसराइल शर्म के साथ एक तरफ नंगा खड़ा है जहा उसके खुद
साथीदार उसका खुल कर साथ नहीं दे सकते। इसराइल ने घिनौने जुर्म कर के
इंसानियत को शर्मसार कर दिया है। इसी जंग के दौरान UN और अमेरिका कई बार
इसराइल को फटकार लगने पर मजबूर हुए और मीडीया के सामने डाट लगाई है। लेकिन
इन सब के साथ बेशर्म अमेरिका ने इसराइल का भरपूर साथ देते हुए इसराइल को
अपने नए हथियार और हवाई जहाज़ दे कर उसे और मज़बूत करने की कोशिश भी की है।
दूसरी
तरफ फिलीस्तीन की मज़लूम अवाम ने अपने जियालो का भरपूर साथ दे कर एक बार
फिर बता दिया की वो किसी भी तरहा के इसराइली और अमेरिकी दबाओ मे नहीं आएगी
और अपनी आज़ादी के लिये किसी भी हद तक क़ुर्बानी देने से पीछे नहीं हटेगे।
हामास, फ़ातहा और दीगर फिलीस्तीनी गिरोहो ने जिस तरह मिल कर इसराइली ज़ुल्म
का सामना किया है वो बगैर अवामी मदद के मुमकिन नहीं था।
इसराइल
का इरादा था की वो ज़मीनी हमला कर के गाज़ा को मुकम्मल तौर पर अपने
क़ब्ज़े मे कर ले लेकिन फिलीस्तीनी मुक़ावमत के सामने इसराइल की एक ना चली
और उसे अपनी शिकस्त क़बूल कर के पीछे हटना पड़ा, जैसे उसे 2000 और 2006 मे
लेबनानी मोक़ावामत से हार कर पीछे हटना पड़ा था।
इसके
साथ ही ग़ाज़ा की मोक़ावामत ने सारी दुनिया को इस बात पर मजबूर कर दिया के
वो इसराइल से ग़ाज़ा की घेराबंदी को खत्म करने की मांग को जंगबंदी की अहम
शर्तों मे से एक शर्त रखे। यहा इस बात की तरफ ध्यान देना ज़रूरी है के सारे
अरब ममालिक, इसराइल और अमेरिका की इस चाल को करारी शिकस्त मिली है जिसमे
वो लोग हमास को एक तरफा जंगबंदी पर मजबूर कर रहे थे। लेकिन फिलीस्तीनी अवाम
की बेतहाशा मदद और शहादत तलबी के चलते ज़ालिम हुक्मरनो की एक ना चली और
इसराइल को फिलीस्तीनी अवाम की शर्तों पर राज़ी होना ही पढ़ा।
ये
बात ज़ाहिर है के ग़ाज़ा की अवाम ने इसराइल के ज़ुल्म और बर्बरियत के
सामने घुटने टेकने से माना कर कर दिया और इस बात से सॉफ इंकार किया के वो
लोग दुनिया के सबसे बड़ी ज़ैल, ग़ाज़ा, मे और ज़्यादा रहे। इसलिये उन्होने
एक अहम मांग जिसमे ग़ाज़ा के घेराओ को खोलने की बात रखी और उसे मनवा लिया।
इसराइली घेरा बंदी मे मामूली छूट से भी ग़ाज़ा के मज़्लूमो की हालत मे बहोत
सुधार हो सकता है।
इस
जंग के बाद अब सबसे बड़ा काम है के ग़ाज़ा की फिर से तामीर की जाए। इसराइल
ने अपनी पूरी ताक़त लगा कर ग़ाज़ा के इलाक़े को नुकसान पहुचने की कोशिश की
है। पूरा इलाक़ा, स्कूल, अस्पताल, सड़कें, मैदान, यहा तक खेत और समंदरी
किनारे भी इसराइली गोलाबारी से बच नहीं पाए है।
इस
जंग मे इसराइल को सिर्फ एक कमियाबी मिली है के वो अपने आइरन डोम (Iron
Dome) हथियार को दुनिया के सामने बेचने के लिये अच्छे तरीक़े से रख सकता
है। इसराइल कई सालो से मज़लूम फिलीस्तीनियों को अपने हथियारों को आज़माने
की एक लॅब बनता आया hai।
इसराइल
के इस ज़ुल्म ने फिलीस्तीनियों मे मौजूद मुख़्तलिफ़ गिरोहो को एक दूसरे के
क़रीब ले आया है। अब फ़तह और हामास एक साथ है और इसराइल से मुक़ाबला करने
के लिये साथ मे खड़े है। अब इसराइल के इस बहाने को कोई जगह नहीं बची जिसमे
को कहता फिरता था के सामने कोई बात करने के लिये मौजूद ही नहीं है। ये किसी
भी गासिब के लिये सबसे बढ़ा खतरा है के उसके सामने वाले एक हो जाए।
जहा
एक तरफ पूरा फिलीस्तीन और सारी दुनिया इसराइल के हाथो शहीद हुए मज़्लूमो
के लिये रो रहे है, वही आलमी इंतिफादा और आलमी मोक़ावामत इसराइल के आगे और
मज़बूत हमला करने के लिये तय्यार हो रहा है। और सारे दुनिया के अम्न और
अदल् पसंद लोग इसका साथ दे रहे है। अब वो दिन दूर नहीं के हम अपनी ज़िंदगी
मे ही देखेगे के इसराइल का नामो निशान इस दुनिया से मीट चुका है और
फिलीस्तीनी आज़ाद हो कर अपनी ज़िंदगी बसर कर रहे है।
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